Wednesday, August 27, 2008
कोई कहे कहता रहे कितना भी हमको दीवाना
रतन टाटा ने धमकी दे दी और कई राज्यों ने उन्हें पाने यहाँ आने का निमंत्रण भी दे दिया, लेकिन न तो वामपंथियों को कोई असर पड़ा ना ही मोटी चमड़ी वाली ममता को, जो पता नहीं ख़ुद को तोप समझती है और अब पागलपन के कगार पर है। पहले भी संसद में सोमनाथ दादा के पास जाकर पेपर की पर्चियां फेंक कर बदतमीज़ी की इन्तेहाँ कर चुकी है। बंगाल से टाटा निकले तो निकले उसे तो अपनी राजनीति चमकानी है, सुर्खियों में बने रहना है। ज़नता ऐसे लोगों को राजनीति से सन्यास क्यों नहीं दिलवा देती, समझ में नहीं आता। यह तरीका लोगों की रोज़ी रोटी छीनने की कोशिश है, ममता को यह कौन समझाए। अब दुनिया की नज़र उसपर है और लोग गाली देते नहीं थक रहे, फिर भी उसे तो अख़बारों और चैनल की सुर्खियाँ चाहिए जो उसे मिल रही है। लगता है राजनीति की कुछ और कड़वी हकीकतें अभी बाकि हैं जो इस साल देखने को मिल ही जाएँगी।
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