Wednesday, August 20, 2008

चरेवेति चरेवेति

तमाम तरह की समस्या उद्योग जगत झेल रहा है, फिर भी उसे उम्मीद है की आने वाले समय में मुश्किलें सुलझेंगी और फायदे का दौर शुरू होगा। चीन में ओलंपिक की वज़ह से डाई इंडस्ट्री बंद हो गयी, अमेरिका को कपड़े के चीनी निर्यात में कमी आयी तो भारतीय कम्पनियाँ आक्रामक रणनीति बनाने लगीं। वियतनाम का उदहारण दिया जाने लगा जिसने पिछले दिनों काफी निर्यात बढाया है। कॉटन कपडों का निर्यात करने वाली भारतीय कंपनी उत्साह में हैं और वे विदेशों में अपने शो रूम खोल रही हैं। लगता है भारतीय कारोबार को बीजिंग ओलंपिक ने कुछ न कुछ फायदा ही पहुँचाया है।

Tuesday, August 19, 2008

पत्रकारों की फौज करेगी मौज

आज शाम में चाय पीते समय कुछ पुराने दोस्तों से मुलाकात हुई। किसी छोटे से आरगेनाइजेशन में हम सब लोग साथ साथ कम करते थे। कोई वहां जी एम् हुआ करता था तो कोई चीफ एडिटर। बीच में कई लोगों ने बड़े बड़े गेम करने की कोशिश की, कुछ सफल हुए कुछ नाकाम। पर अब सब लोग अपने अपने प्रकाशन के सीईओ हैं। चाय के समय वे किसी एड एजेन्सी से बात कर रहे थे की अरे यार अब दे भी दो, कंपनी के मालिक ने कह दिया है। सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ पर यह सच है, उनमें से हर कोई महीने के खर्च वर्च निकलकर ५०,००० रूपये कमा लेता है। नैचुरल सी बात है अगर वे कहीं जॉब कर रहे होते तो इतनी ही सेलरी भी मिल रही होती या कम ही। मैंने पूछा कि कम चल जाता है, पलटकर एक ने जवाब दिया अरे नौकरी तो नहीं कर रहे ना। काम चलाने के लिए अपनी कमाई काफ़ी है, और साथ में दस लोगों को काम भी दिया हुआ है। बड़े ताजुब की बात है की अच्छे संसथान में काम कर रहे लोग जितना आराम नहीं कर पते और जितनी कमाई नहीं कर पाते, तथाकथित टुच्चे पत्रकार उससे अधिक कमा रहे हैं।
धन्य है पत्रकारिता और धन्य हैं हमारे नीति निर्धारक

Monday, August 18, 2008

प्रचंड के हाथ में नेपाल

विश्व के एकमात्र हिंदू देश में २४० वर्षों के बाद राजशाही का पतन हो गया। मज़े की बात यह है कि नेपाल की किस्मत उस प्रचंड के हाथ में है जिसे गुरिल्ला कहा जाता था और जो हाल तक भूमिगत रहता था। इसके अलावा प्रचंड के साथ और तमाम तरह के इल्जाम जुड़े हैं, जिसे अब नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि वे हमारे पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री हैं। हमला कर लाखों लोगों को मौत के घाट उतरने वाली पार्टी को हर ज़गह हिकारत भरी नज़रों से देखा जाता है, पर अगर देश की ज़नता को वही पसंद हो तो कोई दूसरा आदमी क्या कर सकता है।
एक मशहूर कहावत है कि अगर चोरी रोकनी हो तो चोर के हाथ में मोहल्ले की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी दे दो, वह चोरी तो भूल ही जाएगा चोरी भी रुक जाएँगी। कुछ एसा ही प्रचंड के मामले में भी हुआ है। पिछले अप्रैल में हुए चुनाव में प्रचंड की पार्टी को ६०१ सदस्य वाले सदन में २२७ सीटें मिली और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालाँकि अप्रैल से गतिरोध जारी रहा पर प्रचंड का प्रमुख चुना जाना तय ही था क्योंकि यह देश की जनता का फैसला था और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उसके पास ज़िम्मेदारी थी।
प्रधानमंत्री पड़ की शपथ लेने के बाद प्रचंड ने कहा कि उनकी प्राथमिकता में देश सबसे उपर है और उसके हित के लिए वह सब कुछ करेंगे। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि प्रचंड सभी दलों को साथ लेकर नेपाल को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने की राह पर चलेंगे और अपने अतीत को भुलाकर देश में शान्ति कायम रखने के प्रयास करेंगे।
पड़ोसी देश में शान्ति कायम रहे और वह भी तरक्की करे हम इससे अधिक कुछ नहीं चाहते।

Sunday, August 17, 2008

जम्मू में बवाल

एक बार फिर जम्मू कश्मीर को बवाल का मौका मिल गया है। वहां उपद्रवी तत्त्व हमेशा मौके की तलाश में रहते है, बात चाहे अमरनाथ बोर्ड को ज़मीं देने की हो या उससे वापस लेने की बावलियों को तो बस बवाल काटने का मौका मिलना चाहिए। पहले ज़मीं देने पर फिर ज़मीं वापस लेने पर।
मज़े की बात है की विरोध का तरीका एक है चाहे वो पहले हो या बाद में वही आगज़नी, वही तोड़ फोड़, वही हिंसक झड़प। बवाल का मौका बदल गया विषय बदल गया पर न तो तरीका बदला न ही चेहरे बदले। एसा लगता है कि हर जगह कुछ आपराधिक लोगों कि भीड़ सिर्फ़ मौके कि तलाश में रहती है और जैसे ही मौका मिला उपद्रव शुरू कर देती है। कश्मीर वैसे ही सेंसिटिव जगह है ऊपर से ये सब बवाल उसे तंग करने के लाइट काफी हैं।
समझना चाहिए बीजेपी और एसी पार्टियों को कि हिंसा कि समस्या का समाधान नहीं है और इससे कभी जी हाँ कभी किसी बात का हल नहीं निकला। बात चीत और मिल बैठकर समस्या का समाधान निकलें बजाये लोगों कि भावना भड़काने के
जय लोकतंत्र की
जय भारत की