Thursday, July 24, 2008

कितना व्यावहारिक है ज़माना

आज मेक्स के एक पीसी में गया था। कंपनी ने मेक्स विजय नाम से एक नै पॉलिसी लॉन्च की है। पॉलिसी लॉन्च करने का जश्न दिल्ली में मनाया जा रहा था जो ग्रामीण इलाकों के लिए बनाई गयी है। ठीक बात है मीडिया कवरेज़ यहाँ मिलता है, पर ये जो तमाम चोंचलेबाजी है उसे देखकर लगता है कि अब भी लोग ज़मीं पर नहीं पहुँच पाते। गरीबों के लिए ऐसे ही फाइव स्टार होटल में सरकार नीतियां बनाती है और गाँव के लोग उन नीतियों का लाभ कभी उठा ही नहीं पाते। निजी कंपनियों का तो मामला ही अलग है, पर आजकल सरकारी दफ्तर भी फाइव स्टार होटल ही हो गए हैं। पता नहीं कब बदलेगी गाँव के लोगों की तकदीर, कब उनके बारे में कोई गंभीरता से सोचेगा।

कितना व्यावहारिक है ज़माना

Tuesday, July 22, 2008

कुछ काम की बातें

एक मशहूर कहावत है
जिंदगी की राह में हर राज़ हम न जाने कितने दुश्मन तैयार कर लेते हैं। जाने या अनजाने कई बार ऐसा होता है कि हम न चाह कर भी किसी को नाराज़ कर जाते हैं और कुछ लोगों को दुखी। ज़ब कभी हम ऐसे दुश्मन तैयार करें जो बदला लेने की ताक में हो और आपसे जीत नहीं पाएं तो हमें उसे माफ़ कर देना चाहिए। एक बार नहीं, दो बार नहीं बार-बार माफ़ करें, लेकिन यह ध्यान रखें कि आपको उसका नाम याद रहे।

हर बात की एक सीमा है और उससे पार होने पर हर किसी को गुस्सा आता है। गुस्से को बाहर निकलने का प्रयत्न होना चाहिए, लेकिन ध्यान रखें कि उससे किसी का जाती नुकसान न हो। ना आपका, ना आपके किसी परिचित का ना ही आपके दुश्मन का। क्योंकि कोई भी नुकसान आखिरकार देश का नुकसान होता है और हमें अंततः देश के बारे में सोचना चाहिए। अगर हम नहीं तो कौन.

Sunday, July 20, 2008

बहुत कुछ है दिल में पर कहने में झिझक होती है

बहुत कुछ है दिल में जो आसानी से नहीं कही जा सकती और सुननेवाला भी उसे सुनकर आरामदेह महसूस नहीं करता। पर बहुत सी बातें हैं जो जरूर कही जानी चाहिए।
एक प्रयास होता है ख़ुद को अपग्रेड करने का, एक साथ वाले लोगों को लेकर चलने का और एक दुनिया को राह दिखने का। दिल में जोश भी है, कुछ करने का जूनून भी और दुनिया को बदलने का हौसला भी, पर कई बार दिल दुःख सा जाता है, लोगों को सड़क की पटरी पर सोता हुआ देख कर।
एक रिक्शे वाले को लालकिले के सामने अपने रिक्शे पर सोता हुआ देख कर लगा कि इससे ज्यादा सुखी तो दुनिया में कोई नहीं।
कमाने कि फिक्र छोड़ कर आराम की नींद ले रहा है बेचारा। हम पागलों की तरह भाग रहे हैं, दिन भर कमाने के पीछे लगे रहते हैं, रात में नींद ही नहीं आती। एसी है, कूलर है , बड़ा सा पलंग है फिर भी नींद नहीं। एक बेचारा रिक्शा वाला सीट पर पैर और बैठनेवाली जगह पर सर रखकर तौलिया ओढ़कर आराम से सो रहा है। इतने बड़े शहर में वही सबसे सुखी है। पर पटरी पर सो रहे लोगों पर क़यामत बरपाने की ख़बर बहुत आहत करती है, उससे भी अधिक दुःख तब होता है जब ख़बर आती है की आरामगाह, रैनबसेरे जुआरियों का अड्डा बन गए हैं।
हम कुछ कर सकते हैं उनके लिए और हमें करना चाहिए। करेंगे हम करेंगे भी

सिर्फ गाली ना दीजिये कुछ कीजिये जनाब

हर कोई राजनीति को और राजनेताओं को गाली देने में लगा रहता है, यह कोई नहीं सोचता कि अपराधियों को वोट देकर जिताया तो हमने ही है। आज ज़ब वे गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार पर उतारू हैं तो हम उसे गाली देते हैं। यूपीऐ सरकार को बचने कि खातिर जो सौदेबाजी चल रही है और जिसका आज आखिरी दिन है उसके लिए जिम्मेदार भी तो हमीं हैं। अगर सरकार को बहुमत मिला होता तो आर्थिक सुधारों को गति मिली होती और विकाश बाधित नहीं होता। आख़िर जब सरकार बचेगी ही नहीं तो सुधार और विकाश कि बात ही बेमानी साबित हो जायेगी ना। इसे कोई नहीं समझता।
हमें बहार खड़े होकर गाली देने कि बजाय राजनीति में हिस्सा नहीं लेना चाहिए। ज़रा विचार करें आपलोग?

a city of joy and prosperity

ये शहर सिर्फ़ बिहार का एक शहर नहीं बल्कि सपनो को पुरा करने का एक जरिया है
हम यहाँ पैदा हुए यह हमारी खुसकिस्मती है
इस शहर ने हमें क्या कुछ नहीं दिया
बड़ी तमन्ना है की हम भी शहर को कुछ दें