Friday, August 15, 2008

भगवन मालिक

परमाणु उर्जा का विरोध करने की वाम दलों की हसरत पूरी हो गयी और इस मसले पर उन्होंने केन्द्र सरकार को विश्वास मत हासिल करने पर मजबूर कर दिया। देश की हालत उर्जा ज़रूरतों के मामले में काफी पतली नज़र आ रही है और तमाम प्रयासों के बावजूद सरकार उर्जा उत्पादन की प्रक्रिया को तेज़ नहीं कर पा रही है तो तमाम विश्लेषक फिर उर्जा के लिए परमाणु करार को आवश्यक बता रहे हैं। चीन ज़हन हर सप्ताह २००० मेगा वाट उत्पादन आगे बढ़ने की कोशिश में लगा है वहीँ हम २०० मेगावाट की रह पर चल रहे हैं। इसका नतीजा यह है मौसम सुहावना होने के बावजूद बिजली की कटौती ज़ारी है और उत्पादन बढ़ नहीं रहा है। अगर यही हालत अगले साल भर भी बनी रही तो देश की अर्थ्व्यव्श्था विकास ५ फीसदी से भी नीचे आ जायेगी। पता नहीं लोगों को उर्जा संरक्षण के मायने समझ में नहीं आते और राजनीतिक दल खाली पीली virodh पर utaroo हो jate हैं । कई baaar kalaam जैसे shakhsh ने उर्जा के लिए परमाणु करार को ज़रूरी बताया, skaपर beejepee के लोगों को भी यह समझ में नहीं आया। क्या होगा होगा देश का पता नहीं, लगता है bhagwan ही malik है।

कि पैसा बोलता है

एक नई बहस ने जन्म ले लिया है आजकल, पैसे वाले लोग दुबई, सिंगापूर, ब्रिटेन और अमेरिका में घर खरीदने में लगे हैं। नए लड़के जो पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे हैं वे भी किराये में रहने कि बजाये अपना घर ही खरीद लेते हैं। प्रोपर्टी डीलर कहते हैं कि हर महीने कम से कम १०० लोग विदेशों में घर खरीदने के लिए पूछताछ कर रहे हैं। वाकई बड़ा समृद्ध हो गया है हमारा देश!
पर समृधि की इस चकाचौंध में नहीं बदली उन लाखों लोगों की किस्मत जो आज भी लालकिले के पीछे पटरी पर सोते हैं और कई कई रात बिना खाना खाए सो जाते हैं। एक घर खरीदने के लिए लाखों रूपये कमीशन दे देने वाले लोग इनके बारे में एक बार भी नहीं सोचते। यहाँ की हालत तो फिर भी ठीक है, पर गाँव का हाल अब भी पुराने ज़माने जैसा ही ही। वहां अब भी बहुत कुछ नहीं बदला। लोग अब भी हात जाते हैं, ५० पैसे, १ रूपये के लिए घंटों चिक चिक बाजी करते हैं और किसी दिन अगर दिहाडी पूरी कर ली तो पर्व त्यौहार मानते हैं।
यही फील गुड है!
जी हाँ यही फील गुड है। कोई विदेश में घर खरीदकर फील गुड कर रहा है, तो कोई देश में ही मंहगी गाडिया खरीदकर फील गुड कर रहा है। कुछ लोग मंहगे होटलों में खाना खाकर, तो कुछ डांस बार में पैसे लुटाकर फील गुड कर रहे हैं। पर एक बात है किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं। बीबी बच्चों के साथ पाँच सितारा होटल से खाना खाकर लौट रहे लोग भिखारी के हाथ में एक रूपये डालना भी पाप समझते हैं। जी यही है फील गुड।
फिर चुनाव की तैयारी!
अब सारे भिखारियों और दिहाडी मजदूरों के दिन फिरनेवाले हैं क्योंकि चुनाव आ रहे हैं। अब उन्हें खूब कम मिलेगा और पूरी दिहाडी साथ में खाना पीना भी। चलो लोकतंत्र के महापर्व पर कुछ लोगों का तो भला हो ही जाएगा।
जय हो लोकतंत्र की, भारतीय गणतंत्र की

parmanu urja का virodh और देश की haaalat

Thursday, August 14, 2008

बाबुओं की आज़ादी देश की बर्बादी

केन्द्र सरकार ने आखिरकार बाबुओं की सेलरी बढ़ने का फ़ैसला कर लिया और आज़ादी दिवस के मौके पर उन्हें तोहफे से नवाज़ दिया। इस बात से किसी को कोई परेशानी नहीं, पर देश की जनता पर जो यह बोझ पड़ेगा उसकी भरपाई कैसे की जायेगी, इस बारे में किसी ने कोई विचार नहीं किया। पहले ही कमरतोड़ मंहगाई से जूझ रही जनता इस भर से कहीं दम ही न तोड़ दे पर सरकार को तो आने वाले चुनाव दिख रहे हैं , उसे दुबारा आना है और सत्ता की मलाई चाटनी है बस। ठीक बात है कि निजी नौकरी में पैसा अधिक है, पर जिम्मेदारियां भी तो हैं। सरकारी अधिकारी कितने जिम्मेदार हैं, किसी से छुपा नहीं है। इसके अलावा जितनी छुट्टियाँ सरकारी नौकरी में हैं, कहीं नहीं हैं। इन सब बातों को अगर जोड़ा जाए तो सरकारी बाबु फ्री की सेलेरी ही उठाते नज़र आते हैं।