विश्व के एकमात्र हिंदू देश में २४० वर्षों के बाद राजशाही का पतन हो गया। मज़े की बात यह है कि नेपाल की किस्मत उस प्रचंड के हाथ में है जिसे गुरिल्ला कहा जाता था और जो हाल तक भूमिगत रहता था। इसके अलावा प्रचंड के साथ और तमाम तरह के इल्जाम जुड़े हैं, जिसे अब नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि वे हमारे पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री हैं। हमला कर लाखों लोगों को मौत के घाट उतरने वाली पार्टी को हर ज़गह हिकारत भरी नज़रों से देखा जाता है, पर अगर देश की ज़नता को वही पसंद हो तो कोई दूसरा आदमी क्या कर सकता है।
एक मशहूर कहावत है कि अगर चोरी रोकनी हो तो चोर के हाथ में मोहल्ले की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी दे दो, वह चोरी तो भूल ही जाएगा चोरी भी रुक जाएँगी। कुछ एसा ही प्रचंड के मामले में भी हुआ है। पिछले अप्रैल में हुए चुनाव में प्रचंड की पार्टी को ६०१ सदस्य वाले सदन में २२७ सीटें मिली और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालाँकि अप्रैल से गतिरोध जारी रहा पर प्रचंड का प्रमुख चुना जाना तय ही था क्योंकि यह देश की जनता का फैसला था और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उसके पास ज़िम्मेदारी थी।
प्रधानमंत्री पड़ की शपथ लेने के बाद प्रचंड ने कहा कि उनकी प्राथमिकता में देश सबसे उपर है और उसके हित के लिए वह सब कुछ करेंगे। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि प्रचंड सभी दलों को साथ लेकर नेपाल को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने की राह पर चलेंगे और अपने अतीत को भुलाकर देश में शान्ति कायम रखने के प्रयास करेंगे।
पड़ोसी देश में शान्ति कायम रहे और वह भी तरक्की करे हम इससे अधिक कुछ नहीं चाहते।
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