आज शाम में चाय पीते समय कुछ पुराने दोस्तों से मुलाकात हुई। किसी छोटे से आरगेनाइजेशन में हम सब लोग साथ साथ कम करते थे। कोई वहां जी एम् हुआ करता था तो कोई चीफ एडिटर। बीच में कई लोगों ने बड़े बड़े गेम करने की कोशिश की, कुछ सफल हुए कुछ नाकाम। पर अब सब लोग अपने अपने प्रकाशन के सीईओ हैं। चाय के समय वे किसी एड एजेन्सी से बात कर रहे थे की अरे यार अब दे भी दो, कंपनी के मालिक ने कह दिया है। सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ पर यह सच है, उनमें से हर कोई महीने के खर्च वर्च निकलकर ५०,००० रूपये कमा लेता है। नैचुरल सी बात है अगर वे कहीं जॉब कर रहे होते तो इतनी ही सेलरी भी मिल रही होती या कम ही। मैंने पूछा कि कम चल जाता है, पलटकर एक ने जवाब दिया अरे नौकरी तो नहीं कर रहे ना। काम चलाने के लिए अपनी कमाई काफ़ी है, और साथ में दस लोगों को काम भी दिया हुआ है। बड़े ताजुब की बात है की अच्छे संसथान में काम कर रहे लोग जितना आराम नहीं कर पते और जितनी कमाई नहीं कर पाते, तथाकथित टुच्चे पत्रकार उससे अधिक कमा रहे हैं।
धन्य है पत्रकारिता और धन्य हैं हमारे नीति निर्धारक
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1 comment:
क्षमा कीजिएगा भाई साहब जो पत्रकारिता के नाम पर कमा रहे हैं उन्हे पत्रकार कह कर पत्रकारों को गाली मत दीजीए. उन्हें विशुद्ध रूप से दलाल ही कहें तो बेहतर होगा.
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