अभी बेगुसराई से लौटा हूँ। ट्रेन में जाते हुए एक बंगालन से मुलाकात हुई जिसकी शादी हरियाने में हुई। अपनी शादी से वह महिला इतनी खुश थी कि उसे बंगालियों के खान पान, रहन सहन से नफरत होने लगी थी। उसे लगता था की मछली भी भला खाने की चीज़ है। उसे आश्चर्य होता था कि कैसे वह सालों उस माहौल में रही। अब उसे रोटी दाल, दही दूध और मट्ठा ही इंसानों के खाने की चीज़ लगती थी।
अभाव के मारे लोगों को जब थोडी सी खुशी मिलती है तो उन्हें न सिर्फ़ अपने समबन्धी और अपनी परम्परा ख़राब नज़र आने लगे बल्कि अपेक्षाकृत मोटी चाल समझे जाने वाला हरियाणा अच्छा लगने लगा। उसकी शादी खरीदकर की गयी और वह ख़ुद ६०००० रूपये में लाई गयी थी। जब उससे यह पूछा गया कि खरीदकर शादी करना कब से अच्छी बात हो गयी तो उसने इस बात को भी सही ठहरा दिया कि अगर लड़कियों की कमी है तो खरीदकर शादी करने में क्या बुराई है।
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